Wednesday 6 June 2012

AC का मज़ा???

आज मैं एक एयर कंडीशंड ऑफिस में बैठा हुए था, तभी कुछ तथाकथित गरीब व्यक्तियों का प्रवेश उस ऑफिस में हुआ. उनका प्रवेश उनके लिए ही नहीं मुझे भी चौकाने वाला था. पसीने से लतपत भारतीय गरीब जैसे ही ऑफिस में प्रवेश करता है वो एक दम सकते में आ जाता है और कुछ अपने साथी के साथ कानाफूसी करते हुए बोला की "यह तो एक अजीब  सी दुनिया है !!! यहाँ ना तो गर्मी है ना ही पसीना, बस लग रहा है की सर्दियों में आ गए!!!" ऐसा कहते हुए वो व्यक्ति अपनी आस्तीनों को नीचे उतार कर कपकपाता हुआ सा खड़ा हो गया. 

तभी अचानक से उसका साथी बोला की शायद ऐसा ही होगा शिमला, मनाली गर्मियों में??? 

वो आदमी तो यह कहकर चला गया लेकिन जाते जाते कुछ सवालो को मेरे  सामने खड़ा कर गया. क्या समाज के अलग अलग तबको के बीच यह खाई इसी तरह से बढती रहेगी??? क्या यही पढ़ा लिखा या यूँ कहे की पैसे वाला वर्ग अपने को समाज की समस्याओं से अलग रखता रहेगा??? क्या सही में ऐसे बड़े ऑफिस में बैठे लोग इन गरीबो के बारे में सोच पाएँगे??? क्या यह लोग सही में इन लोगो के दर्द को समझकर उनके लिए नीतियाँ बना सकने में सक्षम हो पाएँगे??? क्या ये समाज के एक वर्ग की conspiracy नहीं है दूसरे वर्ग के लिए??? कब तक हम भारत और इंडिया के बीच के इस खाई को इसी तरह बढ़ते हुए देखते रहेंगे???

यह सभी प्रश्न मुझे बेचैन कर रहे है. मुझे लगा की अमीरों के हिस्से के गर्मी भी गरीबो को हे क्यों मिलती है??? अमीरों ने AC लगा करके अपने घर, गाड़ी और ऑफिस सबको गर्मी मुक्त कर लिया लेकिन यह गरीब कहाँ जायेंगे??? उनके AC घर, ऑफिस के गर्मी बाहर के वातावरण में ही डाल रहे है ना....और उनको झेल कौन रहा है?????

मीडिया रोज़ दिखाता है आज पारा 44 के पार पंहुचा और आज 45 के पार.... यह सब किसके लिए पहुँच  रहा है??? किसके लिए गर्मिया है और किसके लिए पानी की किल्लत??? किसको लू लगती और मरता कौन है??? 

इसी बात पर मेरी बात कुछ लोगो से हुई जिसमें गाँव और शहर दोनों एक लोग शामिल थे. कुछ गाँव के नौजवान लोग अपने यहाँ AC लगाने के बात करते पायें गए और वहीँ कुछ गईं के बूढ़े लोग अपने आम के बगीचों के मिसाल देते नहीं थक रहे थे. उनका कहना था कि गाँव में आज भी आम के बागों में गर्मी नहीं लगती, आज भी शाम को नीम के पेड़ के नीचे चारपाई बीछा कर सोने का मज़ा AC नहीं दे सकता. 

लेकिन वहीँ शहर का गरीब बोला कि "साहब मुझे तो आम का बगीचा और नीम का पेड़ कहाँ नसीब है??? मेरी ज़िन्दगी तो सूखे पाते कि तरह है हवा के रुख के साथ चलती है. अब तो लगता है उपर वाला हमें इतना सहनशील बनाता है कि गर्मी पता ही नहीं चलती है??? 

एक व्यक्ति ऐसा मिले जो Construction का काम करता है पर गर्मियों में आम का बगीचा ठेके पर लेकर 3 -4 महीने वही बीताता है ताकि गर्मियों से बच जाये. 

इस तरह के विचार सुन कर लगा कि क्या हालत है इस देश में??? एक और तो 35 लाख का toilet बन जाता है और दूसरी और लोगो को गर्मी से बचने के लिए पलायन करना पड़ता है. पेट्रोल के मूल्य बढ़ने से जहा देश व्यापी आन्दोलन हो जाता है, उसका फायदा असली में किसको मिलता है- एक आम आदमी को या फिर एक तथाकथित भारतीय गरीब को?????

नोट: यह घटना हरिद्वार जिले के रूडकी शहर की है.