आज 18 मई की शाम थी. मैं और अभिनव भागलपुर में जाग्रति यात्रा के जागरूकता अभियान को पूरा करके दरभंगा (बिहार) की ओर जाने के तैयारी में थे. जैसे ही होटल से निकलने को थे अचानक आंधी तूफ़ान ने दरवाज़े पर दस्तक दे दी. रेसपनिस्ट को बोला बिल जल्दी बना दो तो बोलता है, "अरे सर! चिंता मत कीजिये, बारिश नहीं आएगी...हम कह रहे है ना .....". हमारी ट्रेन पहले से ही 1 घंटा लेट हो गयी थी, लेकिन वो है की परवाह ही नहीं कर रहा था. फिर भी हम सब्र से काम ले रहे थे, कारण रेलवे स्टेशन सामने ही था.
खैर हम स्टेशन पंहुचे तो पता चला गाड़ी प्लेटफ़ॉर्म नंबर 2 पर आएगी. सामान ले कर जैसे तैसे पुल करते हुए प्लेटफ़ॉर्म पंहुचे तो बारिश शुरू हो गयी, जैसे 'सिर मुडाते ओले पड़ गए'..... कारण प्लेटफ़ॉर्म पर मौजूद शेड्स, जो छिटके हुए थे और जहाँ थे भी, वहां टपक रहे थे. खैर इंतजार था तो बस ट्रेन का क्योकि वह एक मात्र ट्रेन थी जो भागलपुर से दरभंगा जाती थी.....और उसमें भी खास बात यह थी की हमें उसके एक मात्र आरक्षित कोच ( कुर्सी यान) में बैठने का टिकेट मिल गया था. हम शान के साथ खड़े थे भले ही हम पर हलकी-फुलकी बोछारें पड़ रही थीं....आखिर हम उन कुछ गिने चुने लोगो में से जो थे, जिनके पास टिकेट आरक्षित टिकेट था
इसी गहमागहमी में अचानक से आवाज़ आई....."हावड़ा से जयनगर जाने वाली गाड़ी २ नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर आ रही है...." हम अपने सामान के साथ तैयार थे. गाड़ी की रोशनी दिखने लगी थी, बारिश अपने पूरे जोरो पर थी....ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर लग रही थी और हम अपने कोच पर नज़रें गडाए हुए थे कि यह अपना कोच है या वो अपना कोच है????.....ट्रेन रुकी तो हमने भी प्लेटफ़ॉर्म पर आगे पीछे दौड़ना शुरू किया....बारिश में भीगते हुआ, सामान के साथ हमने आगे से पीछे, पीछे से आगे गाड़ी को कई बार नाप लिया पर हमें कोई सफलता हाथ नहीं लगी......
थक कर आखिर में गार्ड के पास गए और पता किया की हमारे वाला कोच कहाँ लगाया है!!!!!
गार्ड साहब बोलते है, " आज उस कोच के पेपर हमरे पास नहीं ना आये हैं...लगता है आज कोच लगाना भूल गए हैं" ......हमारी हवा ख़राब हुई कि यह बोल क्या रहा है. फिर से पुछा कि कोच भागलपुर में लगता है क्या???
जवाब आया, ' नहीं कोचवा तो हावड़ा से ही लगता है, पर आज नहीं लगाया है ना'.....
अब हमें लगा कि क्या किया जा सकता है, फिर एक आखरी हथियार आजमाया, फिर पुछा कि हमारा क्या होगा ???, 'तो फिर तपाक से जवाब आया, पूरी गाड़ी पड़ी है कहीं भी बैठ जाओ'.....मैं और अभिनव एक दूसरे को देख रहे थे....तभी ध्यान आया के गाड़ी भी चलने वाली है. ध्यान आते ही फिर से दौड़ना शुरू किया कि किस कोच में बैठा जाये, तभी गाड़ी चल पड़ी.......दौड़ते-दौड़ते एक कोच में चढ़ गए, वहां एक व्यक्ति गेहूं के 8 बोरे लेकर एक पूरा कम्पार्टमेंट लेकर बैठा हुआ था. बैठने के लिए जगह मांगी तो जवाब मिला,' सुल्तानगंज तक ही ना जाना है, वहां से आपको सीटवा मिल ही ना जाना है. तनिक सांस लीजिये'!!!!......
वहां जगह ढूढ़ते हुए जनरल कोच में अपना स्थान ग्रहण किया और किस्सा भागलपुर का ख़तम हुआ.....
वहां जगह ढूढ़ते हुए जनरल कोच में अपना स्थान ग्रहण किया और किस्सा भागलपुर का ख़तम हुआ.....
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ReplyDeleteHahahaha.. Kul milakar apka Jharkhand-Bihar safar kafi mazedar aur gyanvardhak raha!
ReplyDeleteSo very impressed to see that you have chosen 'Hindi' as your medium of expression. Keep posting :)
ReplyDeletesahi likhe ho bhaiya
ReplyDeleteHow can we expect safety related to signal mishaps when they can miss to connect an entire coach....This is pathetic...This is why accountability is necessary for its smooth functioning... For that matter a portion of railway should be privatized like NTPC, SAIL, coal India etc...I heard Delhi Metro is also planning to come with an IPO...That will be a good move...With this they have to report to public with every quarter end and they will be accountable to at least share holders.....
ReplyDeleteThat is my understanding...
please do share a solution if you think one...
accha experience raha..
ReplyDeleteBahut hi achcha experince hai bhai; kash tera ye blog didi bhi padhti
ReplyDeletehehehe too gud..loved it
ReplyDeleteLovely lines,
ReplyDelete"Lagta hai compartmentwa lagawa bhul gayil ba"
GOD SAVES INDIAN RAILWAYS
really nice....it's india and it can be only in india
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